हादसा….
ये शहर
बन गया है हादसों का…..
और लोगों के
जान की कीमत दो कौड़ी की
कभी सड़कों पर दौड़ती तेज गति वाहन
देता है मौत को अंजाम
तो कभी ट्रेन पटरी से उतड़कर
लेती है बेकसूरों की जान
और ऐसे ही न जाने कितने ही
छोटी-बड़ी घटनाएं
रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ चुकी है
जहाँ आए दिन हादसे
सर चढ़कर आमंत्रण देती है मौत का
फिर भी
हमारा समाज, प्रशासन इसे अनदेखी कर
आँखें मूंद लेती है
कीड़े- मकोड़ों सी हालत हो गई है
आज आम जिंदगी की
घर से बाहर निकलने के बाद जबतक
लौट न आएं वापस सही सलामत
तबतक
जिंदगी लड़खड़ाती जान बचाती फिरती है
ये शहर बन गया है हादसों का…..