गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कभी भी चले आना दर्दे दिल पिघला मिलेगा
ठहरी ठहरी सी आंखें अश्क निकला मिलेगा
धड़कने बैचेन करती जिस्म को तेरी यादों में
मुद्दतों बाद भी अरमान बिना संभला मिलेगा
दरवाजे अब भी इंतजार में अधखुले से रखे है
दस्तक देने की जरुरत नहीं घर खुला मिलेगा
नजरें लाज से बोझिल हो तो समझा लेना तू
ठिठकना नहीं लाज से न कोई गिला मिलेगा
सच में जीस्त बड़ी तन्हा तन्हा गुजारी हमने
पर साथ में गमों का एक सिलसिला मिलेगा
शिकायत तुम्हारी गैरवाजिब है भुला देने की
दिल के जर्रे जर्रे में यादों का काफिला मिलेगा

नन्द सारस्वत–बेंगलुरू

नन्द सारस्वत

नन्द सारस्वत 27/7/1961 स्नातकोत्तर ( व्यवसाय प्रबंधन ) राजस्थान विश्वलविध्यालय पता- # 1 गोदावरी विला मिनाक्षीनगर बैंगलुरु-79 व्हाटस एप्प-8880602860 email [email protected]