तरही ग़ज़ल !
कैसी ये आफत है हम कहेंगे कैसे।
दिल पर इस बोझ को अब सहेंगे कैसे।
वतन की कम खुद की फिक्र है सबको,
एकजुट होकर यूं फिर अब रहेंगे कैसे।
परिंदों ने भी ढूंढ लिया ठिकाना कोई,
बड़ते तापमान से धरा के वो बचेंगे कैसे।
अश्क भी आँखों में ही सिमट कर रह गए,
हालातों की इस कशमकश में बहेंगे कैसे।
हर शह से मिलते नहीं ख्याल हर किसी के,
वास्ता यूं हर किसी से फिर