“गज़ल”
काफ़िया- अर, रदीफ़- जाना चाहिए, मात्रा भार- 24
ए जिंदगी तुझे अब सँवर जाना चाहिए
अपने वजूद पर तो गुजर जाना चाहिए
तुने इन दिक्कतों को महल बनाया कैसे
गर उठी दीवार तो बिखर जाना चाहिए।।
कभी तो तकते बगैर दिल ईंट जुड़ जाते
जिगर दिलदार है तो उभर जाना चाहिए।।
सीधी तस्वीर भी ताकती तिरछी होकर
टंग जाने के बाद ठहर जाना चाहिए।।
क्या विसात है तेरे इस रौनक रसूक का
गिरा हुआ गुनाह भी सुधर जाना चाहिए।।
मेहनती रोटी भी चखे मीठी पकवान
लिए नहीं उधार तो मुकर जाना चाहिए।।
सीख लेना ‘गौतम’ गुण सम्मान से जीना
नहीं नाहक गाँव को शहर जाना चाहिए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी