गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

काफ़िया- अर, रदीफ़- जाना चाहिए, मात्रा भार- 24

ए जिंदगी तुझे अब सँवर जाना चाहिए

अपने वजूद पर तो गुजर जाना चाहिए

तुने इन दिक्कतों को महल बनाया कैसे

गर उठी दीवार तो बिखर जाना चाहिए।।

कभी तो तकते बगैर दिल ईंट जुड़ जाते

जिगर दिलदार है तो उभर जाना चाहिए।।

सीधी तस्वीर भी ताकती तिरछी होकर

टंग जाने के बाद ठहर जाना चाहिए।।

क्या विसात है तेरे इस रौनक रसूक का

गिरा हुआ गुनाह भी सुधर जाना चाहिए।।

मेहनती रोटी भी चखे मीठी पकवान

लिए नहीं उधार तो मुकर जाना चाहिए।।

सीख लेना ‘गौतम’ गुण सम्मान से जीना

नहीं नाहक गाँव को शहर जाना चाहिए।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ