“पिरामिड”
(1)
ये
खून
धब्बा है
कलंक है
परिसर में
विधा का मंदिर
करुणा कैसे मरी।।
(2)
ये
दृश्य
नृशंस
हत्या है जी
क्या है भविष्य
स्कूल आँगन में
रोती विलखती माँ।।
(3)
वो
हाथ
काँपता
बचपन
मौन दीवारें
बहता खून है
अवरुद्ध आवाज।।
(4)
माँ
बाप
लाड़ला
होनहार
दीपक बुझा
न्याय की गुहार
मानवता बीमार।।
(5)
क्या
दिन
क्या रात
अंधी छाया
गला दबाए
किससे उम्मीद
टूट गया सपना।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी