कविता

“पिरामिड”

(1)

ये

खून

धब्बा है

कलंक है

परिसर में

विधा का मंदिर

करुणा कैसे मरी।।

(2)

ये

दृश्य

नृशंस

हत्या है जी

क्या है भविष्य

स्कूल आँगन में

रोती विलखती माँ।।

(3)

वो

हाथ

काँपता

बचपन

मौन दीवारें

बहता खून है

अवरुद्ध आवाज।।

(4)

माँ

बाप

लाड़ला

होनहार

दीपक बुझा

न्याय की गुहार

मानवता बीमार।।

(5)

क्या

दिन

क्या रात

अंधी छाया

गला दबाए

किससे उम्मीद

टूट गया सपना।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ