जिस्मों की मंडी
शिक्षित समाज,
ये सभ्य समाज,,,
सब्जी-भाजी की तरह,
लगती है जहाँ,
आज भी…
जिस्मों की मंडी ॥
नज़रें करें,
तोल-मोल ।
कभी छू कर,
तो कभी कुटिल निगाहों से ।
करें अर्धनग्न…
लगाएँ मोल भाव ॥
सफेदपोशी की चादर ओढ़े,
आदमखोर…
बेचें जमीर ।
और वे मजबूर,
लाचार …
तो बस तन ही बेचें ॥
कुछ मजबूरी में,
तो कुछ हो लाचार ।
रोज़ ओढ़ कफ़न,
हो तैयार ,
सब्जी भाजी की तरह …
बिकने के लिए ॥
अंजु गुप्ता