पन्ने मेरी पुस्तक के
शीर्षक – “पन्ने मेरी पुस्तक के”
सहेज कर रखी है कुछ यादें
मैंने अपने पुस्तक के पन्नों पर
वो सुखात्मक- दुखात्मक
अनुभूतियों के रंग
वो अपनो के साथ
जीवन जीने का ढंग
खोल कर पुनः पुस्तक
शब्द-शब्द निरख कर
स्मृतियों के समुंदर में
गोते लगाती हूँ पल-पल
कड़वाहट से भरा है
कोई मटमैला पन्ना
तो सुख का अहसास है
कोई सुनहरा पन्ना
कोई अनोखी सीख दे जाता है
तो कोई अनदेखे भावों की
गहराइयों में डुबो जाता है
बहुत कुछ लिखा है
मेरे मन ने, इस पुस्तक में है यह मेरी सच्ची सहचरी
दे कर उसको
अपने हृदय के उदगार
सुंदर सपनीले स्वप्न
अश्कों में भीगा दर्द
न बदल सकने की छटपटाहट
विचारों का विरोध
दे कर उसको सारा बोझ
मैं रहती हूँ सुकून से ,
यह सोच कर ही रूह काँप जाती है मेरी
अगर ! न होती यह पुस्तक
तो क्या होता –
सब कुछ टूटा और
बिखरा होता
समेटे न सिमटता
यह मेरी जिंदगी का फलसफा ।
निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम