भूला न देना
तुम मुझको नहीं रिझाओ
मुझे हमेशा डर लगता है
ऐसे न तुम कभी हंसाओ
खुशियों में भी गम दिखता है
ऐसे न तुम प्रेम दिखाओ
कभी टूटने का डर लगता है
ख्वाबों में न तुम रोज आओ
ख्वाब टूटने का डर लगता है
गुलाबी रंग न मुझे दिखाओ
बाद में नफरत सा लगता है
खेल-खेल में नही हंसाओ
मुझे रोने जैसा लगता है।
क्यों कहती हो पास आओ
आने की दूरी दूर लगता है
ऐसे न तुम प्रेम लगाओ
प्यार अधूरा सा लगता है
अधरों पे मुस्कान न लाओ
मुस्कान भी जहर लगता है
ऐसे न तुम अपना बनाओ
भूला न देना डर लगता है।
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रचनाकार -:
© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’