गीतिका
हुई अंजुमन मे आपकी रात आधी !
रह गई मुलाकात आधी बात आधी!!
हाथ जो बढ़ाया हमने खफा हो गये!
महफिल से हुई रूखसत बारात आधी!!
नजरे उठायी जो बहकने लगे कदम!
खता हो गई थी चांदनी रात आधी!!
करवट बदलते ही सहर हो गई साहिब !
करार आया कहां था थी बात आधी!!
फिर मिलने का वादा करके चले वो!
रो रही थी हर कली कायनात आधी!!
मुड़कर जो देखा मुझे करार आ गया !
कह गये वो मेरी हर सौगात आधी!!
यादें है अब पास उनकी मेरे रहबर !
फाड़ दी तस्वीर तहरीर किताब आधी !!
रो रोकर जीते है गैरो की महफिल मे !
होती रही तुमसे अक्सर मुलाकात आधी !!
मुमकिन कहां है अब मक्का-मदीना!
पहुंचती रही हर बार मेरी आवाज आधी!!
— प्रीती श्रीवास्तव