षड्यंत्र
षड्यंत्र (छन्द मुक्त कविता)
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षड्यंत्र बिन नहीं
काम चलता
चाहे हो अपना भाई कोई
भाई ही भाई को डसता
कलयुगी इस दौर में
षड्यंत्र करते कृष्ण भी
अधर्म के विरोध में
मरवा दिया भीष्म को
छल-कपट-षड्यंत्र से
षड्यंत्र से ही जीत पाये
बालि,रावण को राम ने
षड्यंत्र करके शकुनि ने
द्रौपदी को अपमानित किया
जब कुछ हो न पाया
लाख का घर जलाया
पुरा महाभारत
षड्यंत्र कर चलाया
राजनैतिक दलों का
पैर है षड्यंत्र ही
विश्व युद्ध भी हुआ यहां
उसमें भी षड्यंत्र था
खाली नहीं कोई जगह
हर जगह फैला षड्यंत्र ही
षड्यंत्र का संरक्षण मिला
बाग बाग हो उठे
देश के शीर्ष बनकर
कर रहे लोग राज अब
कैसे चलेगा कार्य अब
हमें तो चहुँ ओर दिखता
प्राचीन से वर्तमान तक
षड्यंत्र ही षड्यंत्र है।
© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’
(कानपुर कर्मनाशा कैमूर बिहार)
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