रावण
फिर से आज दशहरा आया,
मेरा पुतला बना दिया l
रामवेश लेकर मानव ने
मरे हुए को जला दिया l
साधुवेश में मेरे द्वारा
सीता एक बार थी ठगी गई l
पाखण्डी-चंगुल में फंसती
नारी फिर भी जगी नहीं l
मैंने तो बस हरण किया था,
उसे तनिक भी छुआ नहीं l
मुझसे बड़े अधर्मी बैठे,
अवतार अभी तक हुआ नहीं l
आँखें खोल घोर से देखो
कितने रावण जिंदा है ?
जिनको रावण कहते हुए
खुद रावण भी शर्मिंदा है l
हर वर्ष ही पुतले जलते,
क्यों मेरी ही निंदा है ?
कलयुग का मानव भी अब तो
सबसे बड़ा दरिंदा है l
सचमुच कलयुग का मानव ही अब तो सबसे बड़ा दरिंदा है । बहुत खूब !
?बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय