गज़ल
मेहनत करोगे तो तुम्हें क्योंकर ना मिलेगा,
कहीं माँगने से तुमको मुकद्दर ना मिलेगा
टूटे हुए दिल में ना प्यार ढूँढ पाओगे,
इस रेत के सहरा में समंदर ना मिलेगा
तलाश करनी पड़ती हैं खुद मंजिलें अपनी,
ये राह-ए-इश्क है तुम्हें रहबर ना मिलेगा
लफ्ज़ों के तीर करने लगे लोगों को ज़ख्मी,
अब किसी के हाथ में पत्थर ना मिलेगा
सर पे कफन बांध के निकला हो जो घर से,
उस शख्स की आँखों में तुम्हें डर ना मिलेगा
— भरत मल्होत्रा