गीत/नवगीत

गीत : ये कविता मेरी है

श्वेत, धवल, उजले आंगन पर मैने,
इक कलम कुछ स्याही लेकर,
अन्तर्मन के अंतर्द्वंद की भावनाऐं उकेरी है,
फिर भी कैसे कह दूं लोगो
ये कविता मेरी है!
दो शब्द मां ने लिखवाऐ, दो अक्षर मेरे बाबा के,
कुछ अक्षर मिले मुझे मथुरा, काशी, काबा के,
कितने ही रुपों में मिली, ये शब्दों की हेराफेरी है,
फिर भी कैसे कह दूं लोगो
ये कविता मेरी है!
इन शब्दों से शायद कोई, मसला हल हो जाऐ,
मैं सफल हो जाऊं, मेरी कलम सफल हो जाऐ,
कुछ प्रतिफल मिल जाऐ, अब इतनी सी तो देरी है,,
फिर भी कैसे कह दूं लोगो
ये कविता मेरी है!
लिये कारवां संग मुझको, दूर बहुत अब जाना है,
मातृभूमि के लिये जीने की, अलख मुझे जगाना है,
दूर बहुत सवेरा अब भी, ये रात बडी अंधेरी है!
फिर भी कैसे कह दूं लोगो
ये कविता मेरी है!
जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से