कविता

ओस की बूँदें

 

सुबह की सोंधी सोंधी खुशबू हवा की
ओस की बूंदों में नहाई घास पर
चलते मेरे कदम लगता है
इससे प्रिय मुझे कुछ भी नहीं
जो एहसास है हर रोज
एक सुबह का
सूर्य की तेज तपती किरणों से पहले
अपने यौवन में होती है वो बूंद ओस की
कदमों को जैसे ही छूती है वो
त्वचा तक ही नहीं पहुंचती !
त्वचा से लेकर मन तक की
दूरी भी तय कर लेती है वो
ओस की बूंद
कई दफा तो कोशिश करता हूं
हथेलियों पर रखने की
सुनहरी ,ठंडी ,मन को हर्षाने वाली
वो ओस की बूंद कितनी अच्छी होती है
बयान नहीं कर सकता
यह सोंधी सोंधी खुशबू हर रोज
सुबह उठा देती है मुझे
एक प्रेमी की तरह जो
मिलने को लालायित है अपनी
प्रेमिका ओस की बूंद से

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733