कविता

चेहरा

 

बहुत चीखा ,बहुत चिल्लाया
कोशिश करता रहा, कभी रह ना पाया
अब क्या करूं समझ से परे
दिखता मुझे हर कोई बहरा है
कोई नहीं है हाथ मिलाता
कोई नहीं है हाथ बढ़ाता
लगता है चारों तरफ
बस जाति-धर्म का पहरा है
किस से लड़ूँ ,किसको समझाऊं
ये सीना चीर कर मैं किसको दिखाऊं
कोशिश जारी है निकलने की बाहर
मगर ये दलदल बहुत गहरा है
मगरमच्छ हैं, लोमड़ी हैं, और सियार हैं
इसमें बहुत सारे बुजुर्ग ,तजुर्बेदार हैं
संकुचित मानसिकता वाला हर कोई
अब यहां पर आकर ठहरा है
विश्वास अब किसी पर होता नहीं
मर्द अकेला कभी रोता नहीं
जद्दोजहद जारी है पहचानने की
क्या करूं सबके चेहरे पर एक चेहरा है

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733