जिनकी शबें अंधेरी हैं
जिनकी शबें अंधेरी हैं
अंधकार की छाती पर, कोई एक दिया तो जला डाले।
जिनके घर फाके पड़ते, कोई उनकी दिवाली मना डाले।।
कहीं पे दीपक जलेंगे बेसक, कहीं जलेगा घर द्वारा।
तुम खुशियों की रोश्नी करोगे, वो दूर करंेगें अंधियारा।।
तुम खुशियों से जब झूमोंगे, वो मां का दामन खीचेगे-
सब तिजारत फूंकेंगें, कोई उनकी मुफलिसी जला डाले।
अंधकार की छाती पर…… कोई उनकी दिवाली मना डाले।।
पकवान भी फेंके जायेगे, कुछ लोग तरस कर रह जायेगे।
जब दुनियां दीप जालायेगी, वो छुपकर अश्क बहायेगें।
कहीं पिता मजबूर मिलेगा, कहीं पे मां लाचार मिलेगी-
मासूमों के अरमान वो सारे, कोई तो पूरे कर डाले।
अंधकार की छाती पर…… कोई उनकी दिवाली मना डाले।।
ऐ कैसी दिवाली आई है, नई मुसीबतें लाई है।
कोई भूख से लड रहा है, सीमा पे होती लड़ाई है।
कई ठहाके गूंजेगें तो, कई सिसकियां भी होंगी।
अडचनों की बड़ी दिवारें, कोई यहां गिरा डाले।
अंधकार की छाती पर…… कोई उनकी दिवाली मना डाले।।
जिनकी शबें अंधेरी हैं, उनको नया शबाब मिले।
बहे हुए अश्को का उनको, आज नया हिसाब मिले।
खुशियों का कायम (राज) रहे, कोई न मोहताज रहे
बस यही हमारी आरजू है, खुदा मुशीबत न डाले
अंधकार की छाती पर…… कोई उनकी दिवाली मना डाले।।
राजकुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी