गीत/नवगीत

“गुरूनानक का दरबार”

ये गुरूनानक का दरबार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

लगा हुआ नानकमत्ता में, दीवाली का मेला,
कृपाणों की दूकानें और फूलों का है ठेला,
मनचाहा ले लो उपहार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

देखो-देखो कितने सुन्दर कंघे, कड़े-खिलौने,
मन को आकर्षित करते हैं सुन्दर चित्र सलोने,
सामानों की है भरमार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

गड़े हुए हैं इस मेले में ऊँचे-ऊँचे झूले,
देख-देख इनको बच्चों के मन खुशियो से फूले,
उत्सव से सबको है प्यार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

कहीं मौत का कुआँ कहीं पर सर्कस लगा अनोखा,
इन्द्रज़ाल को दिखला कर जादूगर देता धोखा,
करतब दिखलाती हैं कार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

उत्सव के इस महाकुम्भ में छाई हैं तरुणाई,
मनचाही चीजें लेने को आये लोग लुगाई,
उमड़ा है मानों संसार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

पाषाणो को छाँट रहे हैं मानुष हट्टे-कट्टे,
गाँवों से महिलाएँ आयीं लेने को सिलबट्टे,
थोड़े दिन का है बाज़ार।
दर्शन कर लो बारम्बार।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है