गीत/नवगीत

मन के दीप जला दे भगवन

दीप बहुत-से जला चुकी हूं, हुआ न दूर अंधेरा,
जीवन बीत रहा है निशिदिन, करके तेरा-मेरा।
कृपादृष्टि जब हो तेरी तब, तू-ही-तू दिख जाए,
मन के दीप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥

कभी न आई पास तुम्हारे, भटकी द्वारे-द्वारे,
सबकी आस लगाई पल-पल, अब तो नयना हारे।
अश्रुकणों को तेल बना जो, किरणों को फैलाए,
मन के दीप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥

आने को है अंतिम क्षण, पर मैं तैयार कहां हूं,
तनिक समय दे चरणोदक से, मैं चुपचाप नहा लूं।
राह कौन-सी आऊं जिससे, तू मुझको मिल जाए?
मन के दीप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥

नहीं बुद्धि है, बल भी कम है, साधन भी सीमित हैं,
चारों ओर अंधेरा छाया, उज्ज्वलता परिमित है।
तू प्रकाश के सुमन खिला दे, क्षीण वदन मुस्काए,
मन के दीप जला दे भगवन, जग रोशन हो जाए॥

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “मन के दीप जला दे भगवन

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! आपकी लाजवाब लेखनी से एक और लाजवाब सृजन । नमन है आपकी लेखनी को । रचना का हर शब्द अपनी जगह सुंदर व सटीक बन पड़ा है । अति सुंदर शिक्षाप्रद रचना के लिये आपका धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    lila bahan , bahut hi sundar rachna hai .

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