गीत/नवगीत

राष्ट्र एकता अमर बनाएं

जिस घर में हो फूट का डेरा,
समझो उसे दुःखों ने घेरा,
वहां घड़ों का सूखे पानी,
सुख करते वहां आनाकानी.

 

 

जैसे कमल के ऊपर पानी,
पल भर को भी ठहर न पाए,
वैसे घर की फूट के कारण,
सुख बाहर से ही भग जाए.

 

 

 

जिस घर में हो फूट वहां का,
लोग तमाशा देखेंगे,
इधर लागाएंगे अग्नि तो,
उधर अंगारा फेंकेगे.

 

 

घर की फूट नहीं होती तो,
बचती स्वर्णिम लंका नगरी,
नंदवंश का नाश न होता,
छलकी क्यों महाभारत-गगरी?

 

 

वैर-भाव इसका भाई है,
द्वेष-कलह इसके हैं प्रियजन
घर की फूट ने तोड़ गिराए,
कितनों के ही कोमल तन-मन!

 

 

भाई-से-भाई अलग हो गया,
बेटे से बापू बिछड़ गया,
घर की ऐसी फूट के कारण,
देश हमारा पिछड़ गया.

 

आओ मिलकर देश बचाएं,
नए-नए उद्योग चलाएं,
प्रेम-भाव का रखकर नाता,
राष्ट्र एकता अमर बनाएं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “राष्ट्र एकता अमर बनाएं

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि आज से चालीस साल पहले भी आपकी लेखनी में वही धार थी जो आज भी आपकी सभी रचनाओं में दृष्टिगोचर होती हैं । रचना का एक एक शब्द शिक्षाप्रद व नायाब है जो आज भी प्रासंगिक है । आज भी ऐसा ही प्रतीत होता है नफरतों के इस दौर में हमारा देश विकास की दौड़ में कहीं पिछड़ गया है । अति सुंदर कालजयी रचना के लिए आपका धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    lila bahan , raastriya ekta par likha geet bahut hi achha hai .is ka pahla hi paira ki जिस घर में हो फूट का डेरा,
    समझो उसे दुःखों ने घेरा,
    वहां घड़ों का सूखे पानी,
    सुख करते वहां आनाकानी. is baat ka parmaan hai kih jis desh men foot hogi voh aage nahin badh sakta .

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