चुप रहते हैं
चलो अब चुप रहते है
कुछ नही बोलते हैं
सुनते हुये भी अनसुना करते हैं
आखिर यही एक रास्ता बचा हुआ है
क्योकि नफरत के बाजार में
प्यार की भाषा कोई समझता नही
छूपे हुये अल्फाज
अब मुखर होते नही
बस अंदर ही अंदर
दब कर रह गये हैं
उस पूरानी डायरी की तरह
जिसके पन्ने पर न जाने कितने
अधूरी ख्वाहिशें दबे पड़े है
बस वही हाल अब इस दिल का है
सब जानते हुये सब सोचते हुये
चुपचाप मूँह बंद कर रखना हैं
और सहते जाना है पीड़ा
नही खोलना मूँह किसी के आगे
नही समझाना किसी को प्यार की बातें
नही दिलाना किसी को विश्वास
नही करना प्यार का इजहार
नही कराना अब अहसास
बस अब सिर्फ चुप ही चुप रहना हैं।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘ निव्या’