कविता

यादों की चादर

सुनो ओढ़ ली हूँ
तेरी यादों की चादर
ये जो सुबह सुबह
हल्की हल्की
ठंढी हवायें
मुझे छुकर गुजरती है तो
उन हवाओ मे तुम्हे महसूस करती हूँ
मन करता है
उन हवाओ को रोककर
कुछ पल
भर लू अपनी बाहो में
फिर से जी लूँ
उन पलो को
जो तुम्हारे साथ बिताई थी
लेकिन इन हवाओ का क्या
ये भी तो तुम्हारे तरह ही
पल भर में
छुकर कही दूर निकल गयें
फिर मैं उस चादर में लिपट कर
तुम्हारे होने का अहसास करती रही
और उस चादर के गर्माहट से
जो सुकून मिला
सच पूछो तो वैसा सुकून मुझे
कभी तुम्हारे साथ होने पर मिलते थें।
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४