ज़िन्दगी मिल गई मुझको
ज़िन्दगी मिल गई मुझको मगर जीना नहीं आया
सामने दरिया था मेरे मगर पीना नहीं आया
बहा डाला जिगर का खून जिन अपनो की खातिर
वही कहते रहे देखो उसे पसीना नहीं आया
बहुत भटका हूं दर बदर कभी इधर कभी उधर
सुकूं जो दिल को दे जाता वही महीना नहीं आया
राह थी पत्थर से भरपूर बदल सकता था अपना नूर
मगर जो भाग्यशाली हो वही नगीना नहीं आया
— राजेश सिंह