यादें…..
कभी कभी मन
बीते दिनों की यादों में
यूँ खोता चला जाता है
जैसे मानो….
जेठ की तपती दोपहरी में
बारिश की ठंडी बूंदों का अनुभव होना
ओढ़ लेता है मन सिमटकर
एहसास भरी यादों की रंगीन चादरें
होने लगती है फिर मुझमें
तुम्हारे होने की आहटें
महकने लगती है साँसे मेरी
उठने लगते है दिल में
एहसासों के धुंए…..
गिरने लगती हूं आहिस्ता-आहिस्ता
मोम की पिघलती बूंदों सी मैं
आँखें खामोश नजरों से
कैद कर लेती है तुम्हें
अपने पलकों के चिलमन में…..
निकल आती है रूह मेरे
जिस्म से बाहर
प्रेम का प्रतिक चिन्ह
अदृश्य छाया रूप में
समां जाने को तुममें…..
और मैं पूर्णता को प्राप्त करती हूँ
प्रेम सम्पूर्णता है जीवन की
यही तो प्रकृति का एकमात्र सच है।