ग़ज़ल
तुम नहीं सुनते कहानी मेरी
हो रही बंजर जवानी मेरी |
क्या कहे तुमको जबानी मेरी
खत्म अब सब वो रवानी मेरी |
धीरे’ धीरे बह गया पानी सब
रह गयी केवल निशानी मेरी |
क्या कहूँ तुमको, कहा जब भी कुछ
झूठ माना सब बयानी मेरी |
आशिका की तो नहीं थी किल्लत
दर्ज़नों में थी दिवानी मेरी |
प्रेम में तेरे हुआ था पागल
थी यही तो एक शेखी मदानी मेरी |
रोते’रोते सुख गया आँसूं सब
देख तू ‘काली’ फ़िशानी मेरी |
शब्दार्थ : मदानी=मुर्खता
फ़िशानी=रक्तिम आँसूं
कालीपद ‘प्रसाद’