ग़ज़ल
यहां हम डूबने को तैयार, बैठे हैं,
वो साहिल पर लिये पतवार, बैठे हैं!
हमारे दिल में क्या है कैसे कहें उनसे,
जो अब तक लब पे ले इंकार, बैठे हैं!
चलो सहरद है क्या तुमको बताऐं,
वो हैं उस पार हम इस पार बैठे हैं!
क्यूं अपना वोट दे हमने चुना उनको,
थे सेवक सब बने सरदार, बैठे हैं!
मिटाने क्यों नहीं अब आते हैं दुष्टों को,
न जाने अब कहां करतार, बैठे हैं!
तुम्हारी राह में जय कबसे यहां हम,
मुहब्बत का लिये संसार, बैठे हैं!
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’
हरदा म प्र