पुतले,पुतले
पुतले,पुतले
चहूँ ओर पुतले
निर्जीव की भेष में
सजीव के भेष में
लेकिन
दोनों कहलाते
पुतले
करते कार्य
अजीबोग़रीब
निर्जीव ने जो दिखाया
सजीव ने नहीं कर पाया
निर्जीव का चमत्कार
सजीव नहीं कर पाया
पुतले का चमत्कार
पुतले ने ही माना
एक तरफ भावना
दूसरी तरफ आस्था
दोनों के संगम ने
दुनिया में
क्या खेल रचाया
चलित पुतले को
स्थिर पुतले ने
भागमभाग की दुनियां में
क्या खूब है भगाया
पुतले ही पुतले पैदाकर
छल-कपटपूर्ण
रास्ता है बनाया
जिसका परिणाम
अत्याचार लूट-खसोट
को बढाया
प्रतिफल में
आहत होकर
गिरते है पुतले
कितनी शोचनीय
कहानी पुतले की
पुतले,पुतले
चहूँ ओर पुतले।
© रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’