साहित्य की आवाज़
अप्रत्यक्ष रूप से
सहयोग के नाम पर
कहते हैं लोग-
पैसा दीजिएगा
रचना को जगह मिलेगी
नहीं दीजिएगा
प्रकाशित नहीं होगी
समझ नहीं आता
साहित्य से पैसा
या पैसा से सहित्य
यह कैसा अद्भुत खेल
साहित्यिक दुनिया में
कर रहें हैं दूर-दूर
पैसे के लिए मेल
देते हैं लालच
रंगीन कागज़ के टुकड़े का
कहते हैं दूँगा
सजा हुआ रंगों के बीच
फोटो हस्ताक्षर सहित
जिससे आप,
लोगों के बीच
श्रेष्ठ की श्रेणी में
अपने आपको देखेंगे।
साहित्य के घर में
साहित्य न होगा।
निकलेगा केवल
अन्तरद्वन्द्व भरी आवाज़
पैसे की कीमत के आगे
साहित्य गया है झुक,
आज के दौर में
कैसी है ये चूक
साहित्य का रुझान
पैसे के लिए भरा उड़ान
बचने का कोई
नहीं रहा सवाल
पैसे की भूख ने
साहित्य में भी छलकपट को
दे दिया निमंत्रण
पड़ गया
सत्य साहित्यिक
प्रेमियों का अकाल
बचेगी कैसे
रचनाओं की पहचान।
@ रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’