अपना और पराया
जिसे भी दूध पिलाया हमने, वह सांप ही निकला
अमृत पीकर भी उसने तो, सिर्फ ज़हर ही उगला
जिसे पेट भर खिलाया, पीठ दिखाके चल दिया
जिसे सजाया संवारा, मुंह पे कालिख मल गया
जिसे पलकों पे बैठाया हमनें, आँखे दिखा रहा है
जिसे सीने से लगाया, पीठ पीछे बातें बना रहा है
तिजोरी भरने के संग संग दिल छोटे होने लगते हैं
कल तक ज़मीं पर रेंगने वाले, हवा में उड़ने लगते हैं
— जय प्रकाश भाटिया