ग़ज़ल
प्यार से माँ की वो’ लोरी गुन्गुनानी फिर कहाँ
राज कन्या राज रानी की कहानी फिर कहाँ ?
तुम ही’ लायी थी बहारें जिंदगी में दिलरुबा
तुम चली जब से गयी, वो जिन्दगानी फिर कहाँ ?
कुर्सी’ सबको चाहिए पर देश रक्षा के लिए
सर कटाने देश प्रेमी, स्वाभिमानी फिर कहाँ ?
क्या वे’ दिन थे यार, करते मौज मस्ती साथ में
मिलते’ सब अब भी वहीँ, पर मेजवानी फिर कहाँ ?
वक्त ने जो ज़ुल्म ढाया, जिंदगी तो बच गई
इस पुराने खण्डहर में, वो रवानी फिर कहाँ ?
एक बार और आगे’ हम यह जीस्त जीना चाहते
ये अगर मिल भी गई. तो वह जवानी फिर कहाँ ?
बाढ़ ने जब कूल तोड़ा, तब नदी तो मिट गई
जिंदगी ही जब नहीं तो, अब निशानी फिर कहाँ ?
इक थी रानी झांसी’ हिम्मत से लड़ाई की सदा
ढूंढ लो इतिहास, देखो वैसी’ रानी फिर कहाँ |
दोस्ती की बात करते, किन्तु खंजर हाथ में
बारहा ‘काली’ कहे यह बेइमानी फिर कहाँ |
कालीपद ‘प्रसाद’