कहानी

मुक्ति !

सुबह सुबह ही रसोईघर से बढ़िया खाने की खुशबू सारे घर में फैल रही थी। सरला ने अपनी मधुर आवाज़ में सबको उठाना शुरु किया और डांटना भी  कि अगर मैं न जगाऊं तो क्या हो, जल्दी उठ जाओ आज रीमा और आशु दोनो की पसंद का नाशता बना है। रीमा कहने को तो सरला की बहु थी पर सरला ने उसे बेटी की तरह ही रखा था, रीमा को भी कभी  नहीं लगा कि वो ससुराल में रह रही है सास ससुर और पति आशु सभी रीमा को पलकों पर बिठाते थे।
शायद सरला ने भी  ऐसा ही महसूस किया था जब वो महेश के साथ ब्याही थी। उसका भी सभी बहुत ध्यान रखते थे। रीमा भी सरला से उतना ही प्यार करती सारा दिन आगे पीछे फिरती। शायद ये खुशियाँ स्थाई नहीं थी। सब तो ठीक चल रहा था, इतना प्यार करने वाला पति इतना ख्याल रखने वाले बहु और बेटा।
सरला का बी.पी . हाई रहता था रोज एक गोली खा लेती और फिर काम पर लग जाती, एक दिन उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था बैठे बैठे ही शरीर का दायां हिस्सा सुन्न होने लगा उसने बहुत कौशिश की पर देखते देखते उसका दायां हिस्सा काम करना बंद कर बैठा। रीमा ने ससुर जी को और आशु को फोन करके जल्दी घर बुलाया वो बहुत सहम गई थी। जल्दी ही सब घर आ गएऔर सरला को अस्पताल पहुँचाया गया। डाक्टर ने चैक करने के बाद बताया कि बी.पी. अचानक बड़ने से पैरालिसिस का अटैक आया था अटैक मेजर था इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता था। दिमाग पर भी  थोड़ा असर हुआ था, महेश अभी  भी  सदमे में था कि सरला को अचानक हुआ क्या है। सबका ख्याल रखती है बस अपना नहीं ! रीमा और आशु तो मां की हालत देख कर रो रहे थे। उन्होने सपने में भी नहीं सोचा था कि सारा दिन हंसते हंसते काम करने वाली मां ऐसे अचानक से इस हालत में पहुंचेगी। कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद घर लाया गया। सरला अब एक बुत से ज्यादा कुछ नज़र नहीं आ रही थी। महेश एक व्हील चेयर लेआया था, उसकी दनिया तो सरला के साथ उदास हो गई थी। घर में वीरानी सी छा गई थी , वो चहल पहल खत्म होगई थी। महेश ने काफी दिन से दुकान बंद रखी थी उसे जाना था, घर का खर्च भी  तो चलाना था। आशु भी मां को खाना खिलाकर जाने की तैयारी करने लगा, रीमा पर सारे घर की जिम्मेदारी आ गई थी। एक लड़की रख ली थी उन्होने वो और रीमा मिलकर सरला को संभालने लगे। खाना खिलाना,कपड़े बदलना सब करते । शाम को घर आकर आशु और महेश संभाल लेते। सरला खुद को संभाल नहीं पाती थी दिमाग पर भी असर हुआ था , अगर कुछ कहना भी चाहती तो बात समझ नहीं आती थी। महेश बहुत उदास हो गया था। बहुत ईलाज कराए पर सरला की सेहत में कोई सुधार नज़र नहीं आ रहा था, शायद किस्मत में सरला का इतना ही साथ लिखा था। समय बीतने लगा था आशु पापा बन गया था हर खुशी में घर को खुशियों से भरने वाली सरला खामोशी का दामन थाम चुकी थी उसकी जिन्दगी तो उसी दिन खत्म हो गई थी पर जाने क्या था जो भुगतना बाकि था। धीरे धीरे सब बदलने लगा था, आशु और रीमा अपने बेटे और अपने परिवार में व्यस्त रहने लगे थे। मां का ध्यान वो लड़की रखती जिसे महेश ने काम पर रखा था। महेश अकेले रहते रहते उदास हो गए थे, घर आने का मन नहीं करता सरला की हालत देख बहुत दुख होता। अब हिम्मत जवाब दे रही थी , घर आकर सरला को देखना संभालना रात को भी सभी काम खुद कराने पड़ते अब तो लड़की भी छुट्टियाँ लेने लगी थी काम भी कम हो गया था। आशु तो मुश्किल से अपने परिवार का खर्च चला पाता था, लड़की अब काम छोड़ चुकी थी। महेश ही अब सरला का ख्याल रखने लगा था। रीमा खाना बना देती और बेटे को भी  संभालना पड़ता वो थक जाती थोड़ी देर पास बैठती थी मां के पर ज्यादा ख्याल महेश ही रखता था। महेश को अब कितने साल हो गए थे सरला की सेवा करते अब आशु और रीमा पीछे हट गए थे क्योंकि सरला के दिमाग के सैल भी खत्म हो गए थे, शोच आदि का भी पता नहीं चलता था। खाना खिला दो तो ठीक है नहीं तो शरीर एक तरह से खत्म ही था। महेश से सरला की हालत देखी नहीं जाती थी न ही उसे संभाला जा रहा था वो रोज भगवान से यही प्रार्थना करता कि सरला को मुक्त कर दे इसकी मुक्ति ही सबके लिए ठीक है। सरला को किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था वो तो कब की मर चुकी थी बस देह से आत्मा की मुक्ति बाकि थी।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |