ग़ज़ल
बिल्ली चूहे का खेल, दिखाना कहे जिसे
नेता प्रजा के बीच, तमाशा कहे जिसे
वादा किया था तुमने मिलेंगे यहीं सदा
लंबा है इंतज़ार, तमन्ना कहे जिसे
दर्दे गरीब को कोई जानता नहीं यहाँ
सहरा है इक, गरीब सहारा कहे जिसे
आंसू से छल छला रही आँखें, हैं वह निहाँ
बह जायगी तमाम वो, दरिया कहे जिसे
तल्खी ज़बान खूब बढाती है दर्दे दिल
चीनी की चाशनी भीगा, ताना कहे जिसे
‘काली’ बुरा न मानना कोई कहे बुरा
शाइर नहीं हनोज, सब अच्छा कहे जिसे
— कालीपद ‘प्रसाद’