लघुकथा

“वक़्त का तमाचा”

 

“-समझ में नहीं आ रहा इस लड़के का क्या करूँ”
“-क्यों अब क्या हो गया?”
“-क्या-क्या बताऊँ रोज-रोज कोई न कोई कांड कर देता है।”
“-आज जिस बात से आप इतना परेशान हैं वही बात बतलाकर हल्का हो लें।”
“-अभी दिल्ली से मेरे पति के मित्र का फोन आया कि मेरे बेटे का सामान लैपटॉप मोबाइल घड़ी उन्हें एक कैब में से मिला है!”
“-बेटे से बात कर सच्चाई पता कर लीजिए…”
“-क्या बात करूँ वो सच बोलता कहाँ है! दो दिन पहले घर आया था उसके पास ये सामान नहीं था। हमारे पूछने पर बोला कि होस्टल में है”
“-आपको बुरा लग जायेगा इसलिए मैं बोल नहीं रही थी लेकिन अभी चर्चा चली है तो अपनी शंका आपसे साझा कर लूँ….”
“-हां!हां बोलिये न”
“-मुझे लगता है वो गलत संगत में पड़ गलत आदतों का शिकार हो रहा है…”
“-आपकी शंका सही है हमलोग भी परेशान इसी वज़ह से हैं…”
“-क्या आपको नहीं लगता कि ये घर में के माहौल की वजह से है… शराब शबाब में पला है… पिता बच्चों के आदर्श होते हैं…”
पड़ोसन की बात सुन सर झुकाए खड़ी रह गईं श्रीमती वार्ष्णेय और अपनी पत्नी को निःशब्द देख चोट का एहसास श्री वार्ष्णेय को हो रहा था

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ