// यादें .. //
// यादें…//
कैसे सोता हूँ मैं
आँखभरी नींद में
आराम से..
सुखभरे इस पलंग पर!
वो यादें हैं अतीत की
अभी भी डबडबाई
इन आँखों में
चलचित्र है ईस्टमन रंग का।
निर्जीव-जीव थे हम
उस झोंपड़ी में,
बरसात में भीगते – धूप में जलते ,
भविष्य की चिंता में
आशा – निराशा की खिंचताई में
हर रोज हम मरते थे।
काल की कठोरता में
बंधे थे हमारे कदम।
अंधकार के घेरे में
दिशा हीन – विगत दशा में
साथी कौन रहे अहे!
साँस को बंदी बनाते,
अक्षरों के साथ दौड़ते
बे सुध हम गिर पड़े थे..
भाई -बंधु -परिजन,
मुँह फेर लेते,
क्या समझा रहे थे हमें!
यादें …
खुरेद – खुरेदकर प्रश्न करती हैं-
अब तुम सो जाओगे..?