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सदाबहार काव्यालय-4

नज़्म

 

ज़रा फासले से रहा करो

 

जो भी दिल में है वो कहा करो
कभी तुम में तुम भी दिखा करो
जो है लफ्ज़ लफ्ज़ के दरमियान
उस अनकही को सुना करो
ज़हन को अपने रिहा करो
ज़रा फ़ासले से रहा करो.

जो नहीं मिला वो क़रीब था
जो मिला बहुत ही अजीब था
ये जो मिल गया तो करम समझ
जो ना मिल सका वो नसीब था
यूं ही ज़िंदगी को रवां करो
ज़रा फ़ासले से रहा करो.

जो ना खुल सके वो किताब क्या
ये गुनाह क्यूं वो सवाब क्या
क्यूं ये खेल दुनिया में चल रहा
तेरे मेरे बीच हिसाब क्या
ये वहम है इसको फ़ना करो
ज़रा फ़ासले से रहा करो.

अंकित शर्मा’अज़ीज़’

 

हम उन सभी कवियों के अत्यंत आभारी हैं, जो सदाबहार काव्यालय के लिए अपनी काव्य-रचनाएं प्रेषित कर रहे हैं. आप एक से अधिक काव्य-रचनाएं भी भेज सकते हैं, लिखते रहिए, इस पते पर भेजते रहिए.

 

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244