ब्लॉग/परिचर्चा

सदाबहार काव्यालय-5

गीत

 

सद्भावना जीवन-सार बने

सद्भावना जीवन-सार बने,
हर मानव का श्रृंगार बने-

सद्भावना से कायम धरती
यह भेद नहीं कोई करती
जग-जीवन को सुदृढ़ करती
हम धरती पर क्यों भार बनें?

सद्भावना से भरपूर गगन
सीमा-रेखा से दूर मगन
केवल समभाव की इसको लगन
क्यों का हम संहार करें?

सद्भावना से हो देश अभय
हर भारतवासी बने निर्भय
हो सत्य-अहिंसा-शील की जय
क्यों जीत हमारी हार बने?

 

लीला तिवानी

 

हम उन सभी कवियों के अत्यंत आभारी हैं, जो सदाबहार काव्यालय के लिए अपनी काव्य-रचनाएं प्रेषित कर रहे हैं. आप एक से अधिक काव्य-रचनाएं भी भेज सकते हैं, लिखते रहिए, इस पते पर भेजते रहिए.

 

tewani30@yahoo.co.in

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सदाबहार काव्यालय-5

  • लीला तिवानी

    शांति हो, सद्भावना हो भाईचारा हो
    हे प्रभो, मेरे वतन में यह दुबारा हो

    द्वेष के दलदल से बाहर कर हमें भगवन
    हर कलह की कालिमा निर्मल हों सबके मन
    फिर धरा पर वो सुधामय प्रेमधारा हो
    हे प्रभो, मेरे वतन में यह दुबारा हो
    शांति हो, सद्भावना हो भाईचारा हो

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