सदाबहार काव्यालय-5
गीत
सद्भावना जीवन-सार बने
सद्भावना जीवन-सार बने,
हर मानव का श्रृंगार बने-
सद्भावना से कायम धरती
यह भेद नहीं कोई करती
जग-जीवन को सुदृढ़ करती
हम धरती पर क्यों भार बनें?
सद्भावना से भरपूर गगन
सीमा-रेखा से दूर मगन
केवल समभाव की इसको लगन
क्यों का हम संहार करें?
सद्भावना से हो देश अभय
हर भारतवासी बने निर्भय
हो सत्य-अहिंसा-शील की जय
क्यों जीत हमारी हार बने?
लीला तिवानी
हम उन सभी कवियों के अत्यंत आभारी हैं, जो सदाबहार काव्यालय के लिए अपनी काव्य-रचनाएं प्रेषित कर रहे हैं. आप एक से अधिक काव्य-रचनाएं भी भेज सकते हैं, लिखते रहिए, इस पते पर भेजते रहिए.
शांति हो, सद्भावना हो भाईचारा हो
हे प्रभो, मेरे वतन में यह दुबारा हो
द्वेष के दलदल से बाहर कर हमें भगवन
हर कलह की कालिमा निर्मल हों सबके मन
फिर धरा पर वो सुधामय प्रेमधारा हो
हे प्रभो, मेरे वतन में यह दुबारा हो
शांति हो, सद्भावना हो भाईचारा हो