।। मिले कम्बल दिसंबर में।।
कांपते तन को गर्माने, मिले कम्बल दिसंबर में।
कोई पुण्य चाहे, कुछ नाम हित कम्बल दिसंबर में।
चिपट एक दूसरे से जो बिताते पूस की ठंडी,
बंटे उन हांथ में एक शाल सा कम्बल दिसंबर में।।
बड़े उत्कृष्ट अभिनेता सा घूमें हर गली नेता,
बड़ा सुंदर सा हितबंधू लगे सबको छली नेता।
बड़े वादे बड़े जज्बे ले के आया था जो हम तक,
ठिठुर कर मर गया कोई, न आया इस गली नेता।।
लिपट कर बैठे दो मासूम, मिले गर्म कम्बल में,
मगर मायूस है चेहरा, लिपट कर गर्म कम्बल में।
जठर में आग है जलती, मिला न अन्न का दाना,
जिएं तो फिर जिएं कैसे लिपट कर गर्म कम्बल में।।
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।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045