जो दिखाई दे रहा था अस्ल में वैसा न था
जो दिखाई दे रहा था अस्ल में वैसा न था
अस्ल में जो था कभी हमने उसे देखा न था
कर लिया था प्यार हमने दिल्लगी के वास्ते
दिल्लगी दिल की लगी हो जायगी सोचा न था
बह रहा है खूं धरम के नाम पर चारो तरफ़
हो रहा है धर्म के जो नाम पर होता न था
हो गया था वो बड़ा दो रोटियों के वास्ते
था बहुत छोटा मगर उसमे कहीं बच्चा न था
वक्त बदला तो हुआ बदलाव ऐसा देखिये
झुक गया हालात से जो की कभी झुकता न था
आग में सिकने लगी हैं फिर सियासी रोटियाँ
आदमी इतना गिरेगा ये कभी लगता न था
सोचकर बेचैन है लाचार आँगन का शजर
हो रहा है जो यहाँ ये तो कभी होता न था
सतीश बंंसल
२१.१२.२०१७