गीतिका/ग़ज़ल

जो दिखाई दे रहा था अस्ल में वैसा न था

जो दिखाई दे रहा था अस्ल में वैसा न था
अस्ल में जो था कभी हमने उसे देखा न था

कर लिया था प्यार हमने दिल्लगी के वास्ते
दिल्लगी दिल की लगी हो जायगी सोचा न था

बह रहा है खूं धरम के नाम पर चारो तरफ़
हो रहा है धर्म के जो नाम पर होता न था

हो गया था वो बड़ा दो रोटियों के वास्ते
था बहुत छोटा मगर उसमे कहीं बच्चा न था

वक्त बदला तो हुआ बदलाव ऐसा देखिये
झुक गया हालात से जो की कभी झुकता न था

आग में सिकने लगी हैं फिर सियासी रोटियाँ
आदमी इतना गिरेगा ये कभी लगता न था

सोचकर बेचैन है लाचार आँगन का शजर
हो रहा है जो यहाँ ये तो कभी होता न था

सतीश बंंसल
२१.१२.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.