सदाबहार काव्यालय-7
देश हमारा
सर पर ताज हिमालय तो
पग धोता हिन्द का सागर है
धन-वैभव-ऐश्वर्य पूर्ण यह
भरी प्रेम की गागर है
कच्छ से ले आसाम तक फैली
मेरी दोनों बाहें हैं
मंजिल एक यहां है सबकी
जुदा-जुदा पर राहें हैं.
सुजलाम सफलाम धरती पर
फैली हरियाली चादर है
सर पर ताज हिमालय तो
पग धोता हिन्द का सागर है.
तीन समुद्रों का है संगम
नदियों की भरमार यहां
गंगा-यमुना-कावेरी संग
बहे चिनाब की धार यहां
तीनों सागर रक्षा करते
पर्वत पहरेदार है
सर पर ताज हिमालय तो
पग धोता हिन्द का सागर है.
दिल्ली में दिल मेरा बसता
मुंबई अर्थ की रानी है
लखनऊ है तहजीबों वाली
काशी शान पुरानी है
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
रहते सब मिल भाई भाई
दया धरम और सत्य अहिंसा
के संग प्रेम की गागर है
सर पर ताज हिमालय तो
पग धोता हिन्द का सागर है.
राजकुमार कांदु
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राजकुमार भाई की इस कविता में एक शब्द है पूर्ण. पूर्ण की महिमा-
पूर्ण एक अद्भुत, आह्लादमय और रोमांचकारी शब्द है. आपने यह श्लोक तो सुना ही होगा-
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते.
ॐ शांति: शांति: शांतिः
वह जो दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है. यह दृश्यमान जगत भी अनंत है. उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ. यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया. पूर्ण का अर्थ है पूरा.
एक महिला ने अपने पति और बेटे के लिए भोजन परोसा. उसने अपने पति को पूरा लड्डू दिया और बेटे को पूरा लड्डू हज़म न कर पाने के कारण आधा. बच्चे ने इसे भेदभाव की संज्ञा दी. समझदार मां ने उस आधे लड्डू को गोल कर पूरा लड्डू कर दिया. बच्चा खुश होकर बोला- ”अब ठीक है. पापा बड़े हैं इसलिए उन्हें बड़ा लड्डू, मैं छोटा हूं इसलिए मुझे छोटा लड्डू.” अब लड्डू पूर्ण था.