औरत तेरी यही कहानी
औरत तेरी यही कहानी, हाथों में पैन आंखों में पानी ,
किससे कहे अपना दुःख, किसको सुनाए अपनी कहानी ।
सदियों से जो चलती आई, रीत तुझे भी वही निभानी ,
दर्द तेरा कोई समझ न पाया, न किसी ने कीमत ही जानी ।
चलते चलते थक गए कदम, फिर भी दर्द से अपने रही अनजानी ।
जिसने भी अपने दिल की मानी, दे दिया समाज ने नाम मस्तानी ।
सब घर बेटी सब घर ज्ञानी, फिर भी रही पहचान पुरानी ,
बेटी है तू इस घर की, तू है “सिर्फ और सिर्फ” अमानत हमारी ।
किसी की मम्मी किसी की बहना, किसी की भाभी किसी की नानी ,
हाथों में बेलन करछी पुरानी, कैसे लिख सकती है वो अपनी जिंदगानी ।
बिरासत में मिली सदियों से सिर्फ उसे एक ही कहानी ,
जिस घर जाना वहीं पर रहना ,चाहे बीत जाए रो रोकर तेरी उम्र सारी ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़