लघुकथा

अहसासों की अनमोल पूंजी

लावण्या आज घर पर अकेली थी. उसे ऐसा लग रहा था, कि उदासी ने उसे बुरी तरह से अपने घेरे में जकड़ लिया था. आज उसके पति के देहावसान की पहली वर्सी थी. सुबह पंडित जी को बुलवाकर हवन करवाया गया था, उसके बाद उसके बेटे-बहू अपने-अपने काम पर चले गए थे. विचारों में खोई-खोई वह न जाने कब केरल से लाया हुआ एक सुंदर-सा मीनेवाला छोटा-सा बॉक्स ले आई. उसी बॉक्स में ही तो उसकी सबसे पहली सुनहरी यादें कैद थीं. इसलिए वह उसे सबकी नज़रों से बचाकर रखती थी. सबसे पहले प्यार की पहली चिट्ठी निकली. उस पहले पत्र के एक गाने की पंक्तियां आज भी उसे याद थीं-

“जलते हैं जिसके लिए मेरी आंखों के दिए,

ढूंढ लाया हूं वही गीत मैं तेरे लिए.”

इन पंक्तियों को उसके पतिदेव ने रंगीन पैंसिल से सजाया भी था. फिर और-और पत्र जो, कई-कई बार पढ़े गए थे, फिर से कई-कई बार पढ़े गए. उस बॉक्स के साथ न जाने कितने घंटे व्यतीत हो गए. अचानक उसका ध्यान घड़ी पर चला गया और उसने पोते-पोती के स्कूल से आने के समय हो जाने के कारण शीघ्रता से उस बॉक्स को अच्छी तरह बंद कर, अपने आंचल से पोंछकर फिर से छिपाकर रखा, उदासी को झाड़ दिया, मुस्कुराहट ओढ़ ली और बच्चों के खाने-पीने की तैयारी में जुट गई. तभी उसके अंतर्मन से आवाज़ आई-

”लावण्या, शादी के लड्डू ही आज अहसासों की अनमोल पूंजी में परिवर्तित हो गए हैं.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “अहसासों की अनमोल पूंजी

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! लावण्या अकेली नहीं थी । उसके पास अपने पति की यादों का पिटारा उस बक्से में होने का अहसास था । उस मीनेवाले बक्से रखी उसके पति की लिखी चिट्ठी उसे हरदम अपने साथ होने का अहसास करा रही थी । भावों का अहसास कराती सुंदर लघुकथा के लिए धन्यवाद !

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