कविता

खुबसूरत थी वह

खूबसूरत थी वह
सर से पैर तक
नहाई हुई थी
दूध से ,उबटन से

देखते रहते थे
लोग आने जाने वाले
कसकते थे पाने को उसको
घूमते रहते थे आसपास यूँही ।

खूबसूरत हसीन चेहरा
ऊपर से कमसीन जवानी
गहरी आँखे ,चाल मतवाली
मीठी गोली सी बोली

यका यक सूख गयी वह
सूखी टहनी सी टूट गयी वह
पिघल गयी थी वह प्यार में
निगल लिया उसको समन्दर ने

देखता रहा आकाश यूँही
बादलों ने भी न कोई शोर किया
किनारे पर रेत से रपटि हुई उसकी देह
आज भी सिसक रही हैं उसी किनारे पर

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377