कविता

तुम्हारा एहसास…..

तुम्हारे एहसासों में खोया मन
कभी अकेला ही नही होता
माना दूर हो तुम
पर तुम्हारी मेरी यादों की संयुक्त परछाई
एक-दूसरे में समाहित है

दूरियों की गहरी खाई भले ये निश्चित करती हो
हमारा मिलन दूभर है
पर हकीकत हृदय की गहराईयों से उठकर
सच को प्रतिबिंबित करता

और एक सुरीला स्वर कानों में गूंज उठता
सच्चा प्रेम नजदीकियों का मोहताज नही
हां मेरी सम्वेदनाओं का हर नन्हा तार
झंकृत हो उठता है तुम्हें महसूसने भर से

और खिल उठती है मेरे अधरों पर
शाम सिंदूरी लालिमा सी मुस्कान की छटा
और फिर एक मौन स्वीकृति अंतर्मन का
कहीं दूर जाकर समा जाऊं तुममें
मन की अभिलाषा और आत्मा का सार बनकर !!

*बबली सिन्हा

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