मौन में भी तरन्नुम होता है
कुछ दिनों से
रेडियो सुनने का
मन नहीं करता
लगने लगा है कि
टेलिविज़न में भी
कोई ढंग का
कार्यक्रम नहीं आता
इसलिए मौन को
अपना साथी बनाया है
सच पूछो तो इसी मौन ने
जादू जगाया है
पहली बार लगा कि
मौन का पल भी विशेष होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.
पोतों को
“चिड़िया-चिड़िया उड़ती जा,
चिड़िया-चिड़िया गाती जा.”
सिखाते-सिखाते
चिड़ियों की चहचहाहट में भी
लगता है
इसी गीत का गुंजन होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.
चलते-चलते
एक पुराना गीत सुना था
“मिल गए, मिल गए आज मेरे सजन,
आज मेरे नहीं हैं ज़मीं पे कदम.”
कुछ गीत में रवानी थी
कुछ मौसम में जवानी थी
अधरों पर इसी गीत की
गुनगुनाहट थी
बरसों से संगीत की
एक जैसी ही धुन में
काम करते हुए
वाटर फिल्टर की
मधुर झनझनाहट में
लगता है
इसी गीत का गुंजन होता है
मौन में भी तरन्नुम होता है.
संकेत है सत्य
मौन खुद भले ही नहीं बोलता है, पर मौन का परिणाम मुखर होता है