लघुकथा

सोच …

” क्या हुआ थक गए ! तुमसे दो चक्कर ज्यादा लगाए हैं ! ” ” थक कर नहीं बैठा, यह तो फ़ोन बीच में ही बोल पड़ा, नहीं तो …! तुमने कंधे पर सर क्यों रख दिया ? अब तुम भी तो …”

” अजी नहीं थकी नहीं हूँ ! मैं तो सोच रही हूँ कि एक दिन ऐसे ही पार्क में ही नहीं जिंदगी में भी सैर करते, दौड़ लगाते तुम्हारे कंधे पर सर रख कर आँखे मूंद लूँ सदा के लिए। ” ” अरे वाह ,तुम्हारी सोच कितनी महान है ! मुझसे पहले जाने की बात करती हो ! और देखो तुम्हारे इस तरह बैठ जाने पर लोग कैसे देख रहे हैं .. हंस रहे हैं … हमें उम्र का लिहाज करते हुए समझदारी से दूर-दूर बैठना चाहिए। ” ” हा हा हा ! सच में ! हमने लिबास ही बदला है सोच नहीं ! चलो एक चक्कर और लगाते हैं !”

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

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