कविता

कुलभूषण

माँ का आशीर्वाद और

पत्नी की बेआवाज़ सिसकियाँ

जरुर भेद पायी होगी

शीशे की मोटी दिवार..

और पहुँच पायी होगी तुम तक,

अनगिनत प्राथनाओं की दुदुंभी भी!

पर सोचती हूँ कैसे तुम अटूट अडिग होगे

और रोका होगा बाजुओं को

जो बिखरते माँ -पत्नी को समेट सके!

अटल अविचल बने

कैसे अड़े रहे होगे न तुम

आंसुओं की मेढ़ के समक्ष!

कितने जतन से रखा होगा ना

माँ ने भी तुम्हारा नाम ‘कुलभूषण’

तुम सच में देदीप्यमान नक्षत्र

कुल के भूषण ही निकले

जिसे नापाक उचक्का उड़ा ले गया!!

सतत अकथ सम्मिलित प्रयास

जरुर वापस ला पायेगा तुम्हें

उन राक्षसों के बीच से

और फिर कोई दिवार

रोक ना पायेगी तुम्हें

माँ के चरण वंदन

और अर्धांगिनी से आलिंगन को..

स्वाति

स्वाति कुमारी

नाम - स्वाति पति- श्री राज कुमार जन्मतिथि- २२ अप्रैल जन्मस्थान -सिवान (बिहार) शिक्षा -ऍम.बी.ए व्यवसाय- हाउस वाइफ प्रकाशन सृजक (त्रैमासिक पत्रिका- प्रबन्ध संपादन), टूटते सितारों की उड़ान (साँझा कविता संग्रह) विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन ब्लॉग http://swativallabharaj.blogspot.in/ ​http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/ छोटे शहर से हूँ और बहुत सी बातों को करीब से देखा और महसूस किया है । लिखना बचपन से हीं सुकून देता रहा है। फिर जीवन के भाग दौड़ में इसकी रफ़्तार एकदम मंद हो गयी । अभी कुछ समय से फिर कोशिश जारी है । लेखनी में इतनी ताकत भरना चाहती हूँ कि समाज की गलत धारणाओं और कुरूतियों के खिलाफ ना सिर्फ लिख पाऊं बल्कि लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास करूँ ।

3 thoughts on “कुलभूषण

  • ‘बेआवाज सिसकियां’
    रचना प्रक्रिया का भाव समझ में समर्थ है ।
    ‘कुल के भूषण निकले’
    उलझा हुआ है और अस्पष्ट शायद कई अर्थ में हो।
    नई तकनीक से लैस है कविता पर महिलाओं पर कविता का अनुनाद में दोहरावपन लिए हुए है ।

  • प्रदीप कुमार तिवारी

    बहुत सुंदर

    • स्वाति कुमारी

      हार्दिक आभार

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