कविता

इच्छाएं

मन की इच्छाएं
तंग लंबी गलियां-सी की भांति
असीमित अनन्त-सी
एक गली से दूसरी,
दूसरी से तीसरी,
फिर तीसरी से चौथी..

और यूँही..….
एक मोड़ से अगला मोड़
चलता ही जाता है

इसी बीच….
रास्तों में न जाने कितने
नदी – नाले, गढ्ढे….
पथरीले रास्ते
रोकती हैं…. राहें

कभी हम डरकर, कभी थककर,
ठहर जाते हैं
नहीं बढ़ पाते आगे

तो कभी इच्छाओं के अधीन
जूझ्ते, लहूलुहान बढ़ते जाते हैं

ये ललक इस हद तक
हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाता है

अच्छे बुरे का फर्क भूल जाते हैं

भूल जाते हैं कि….
किस रास्ते पर हम चल पड़े हैं

कंक्रीट के जंगल
भयानक स्वार्थ के जानवर की ओर
खींच रहा …..

जिसके रास्ते गुजरते नोच खाएगा
बेमतलब शौकिया भौतिक इच्छाएं
गुमराह करने वाली गलियों-सी
मानव मन की इच्छाएं
और ये इच्छाएं हैं कि
कभी थकती नहीं….
कभी ठहरती नहीं…
चलती जाती हैं निरंतर….

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]